माननीयों का चरित्र
एक दिन शाम को
मैं गया था वहाँ,
विक्षिप्तों की
गोष्ठी
हो रही थी जहाँ ।
देखकर उनमें से
एक ने ऐसा कहा,
कौन सी पार्टी
ने
तुम्हें भेजा यहाँ ।
मैंने उनसे कहा
मैं हूँ वो नहीं,
उसने मुझसे कहा
बोलो धीरे से ही ।
मैं समझता हूँ
तुम हो उसी गैंग के,
देश को जो
खा
गए हैं लूट के ।
विधायक हैं दस
मेरे पास भी,
कितनी माया
मिलेगी
ये बताओ हमें ।
बना दोगे
मन्त्री
हमें तुम अगर,
मेरा पूरा
समर्थन
मिलेगा तुम्हें ।
ठगना जनता को
सीखा है
बड़ी लगन से,
पार्टी ये
हमारी
बनी है ठगन से ।
दंगों पर हमने
शोध किया है,
हम दंगों में
माहिर हैं ।
अंग्रेज़ों से
नीति सीख ली
जन्मजात हम
क़ातिल हैं ।
देश बेंचना
हमको आता
हम काले धन के
स्वामी हैं ।
अफ़ज़ल और दाउद
क्या हैं
हम इनसे भी
नामी हैं ।
हम हर काम में
पक्के हैं
बस काम बताओ ।
सब कुछ दिलवा
सकते हैं
बस दाम लगाओ ।
घोटालों की
शिक्षा तो
हमने बड़ों से पायी है
ताबूत तोप चारा
से तगड़े
घोटालों में निपुण तो
हमारी लुगाई है ।
संसद में नोट
हमने ही उछाले थे ।
नेताजी को
मारने वाले भी
हमारी जाति वाले थे ।
मैंने कहा
श्रीमान् जी
धैर्य रखिए
हमें भी तो सुनिए ।
क्या हमें चोर
बेईमान
या दलाल समझा है ?
वतन के गद्दारों
जनता का ख़ून पीते हो,
मुझे क्या
जनता
के जिस्म में लगा
एचआईवी विषाणु
समझा है ?
अरे
देशद्रोहियों शर्म करो
वर्ना मृत्युदण्ड पाओगे ।
सब कुछ मिट
जाएगा
जब कानून में फंस जाओगे ।
तपाक से बोला
उनका मुखिया
कभी इतिहास पर ग़ौर किया है ।
तुम अभी हमें
जानते नहीं
हमने घाट-घाट का पानी पिया है ।
प्रधानमन्त्रियों
के हत्यारे भी
यहाँ फ़ाँसी नहीं चढ़ते ।
क्षमादान का
ब्रह्मास्त्र वहाँ
हम सबका ही रखवाया है ।
इतना सब सुनकर
हमारा शरीर ठण्डा हो गया ।
मैं सोचने लगा
यह
क्या सच में लोकतन्त्र अन्धा हो गया ?
कुछ कहता इससे
पूर्व
किसी ने मुझ पर जूता चला दिया ।
अवाक स्तब्ध
मैं जड़मति
समझ ही न पाया ये क्या हो गया ?
तभी एक ने कहा
तुम तो बड़े ही बेशर्म हो ।
जूते खाने के
बाद भी
यहीं खड़े हो ।
माननीयों का
चरित्र
अब मेरी समझ में आ गया ।
वक्त की करवट
भाँप
मैं भी चुपचाप घर आ गया ।।
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