Sunday, October 4, 2015

माननीयों का चरित्र

माननीयों का चरित्र

एक दिन शाम को 
मैं गया था वहाँ,
विक्षिप्तों की गोष्ठी 
हो रही थी जहाँ ।
देखकर उनमें से 
एक ने ऐसा कहा,
कौन सी पार्टी ने 
तुम्हें भेजा यहाँ ।
मैंने उनसे कहा 
मैं हूँ वो नहीं,
उसने मुझसे कहा 
बोलो धीरे से ही ।
मैं समझता हूँ 
तुम हो उसी गैंग के,
देश को जो 
खा गए हैं लूट के ।
विधायक हैं दस 
मेरे पास भी,
कितनी माया मिलेगी 
ये बताओ हमें ।
बना दोगे मन्त्री 
हमें तुम अगर,
मेरा पूरा समर्थन 
मिलेगा तुम्हें ।
ठगना जनता को सीखा है 
बड़ी लगन से,
पार्टी ये हमारी 
नी है ठगन से ।
दंगों पर हमने 
शोध किया है,
हम दंगों में माहिर हैं ।
अंग्रेज़ों से नीति सीख ली
जन्मजात हम क़ातिल हैं ।
देश बेंचना हमको आता
हम काले धन के स्वामी हैं ।
अफ़ज़ल और दाउद क्या हैं
हम इनसे भी नामी हैं ।
हम हर काम में पक्के हैं 
बस काम बताओ ।
सब कुछ दिलवा सकते हैं 
बस दाम लगाओ ।
घोटालों की शिक्षा तो 
हमने बड़ों से पायी है
ताबूत तोप चारा से तगड़े 
घोटालों में निपुण तो 
हमारी लुगाई है ।
संसद में नोट 
हमने ही उछाले थे ।
नेताजी को मारने वाले भी 
हमारी जाति वाले थे ।
मैंने कहा श्रीमान् जी 
धैर्य रखिए 
हमें भी तो सुनिए ।
क्या हमें चोर बेईमान 
या दलाल समझा है ?
वतन के गद्दारों 
जनता का ख़ून पीते हो,
मुझे क्या 
जनता के जिस्म में लगा
एचआईवी विषाणु समझा है ?
अरे देशद्रोहियों शर्म करो 
वर्ना मृत्युदण्ड पाओगे ।
सब कुछ मिट जाएगा 
जब कानून में फंस जाओगे ।
तपाक से बोला उनका मुखिया 
कभी इतिहास पर ग़ौर किया है ।
तुम अभी हमें जानते नहीं 
हमने घाट-घाट का पानी पिया है ।
प्रधानमन्त्रियों के हत्यारे भी 
यहाँ फ़ाँसी नहीं चढ़ते ।
क्षमादान का ब्रह्मास्त्र वहाँ 
हम सबका ही रखवाया है ।
इतना सब सुनकर 
हमारा शरीर ठण्डा हो गया ।
मैं सोचने लगा यह 
क्या सच में लोकतन्त्र अन्धा हो गया ?
कुछ कहता इससे पूर्व 
किसी ने मुझ पर जूता चला दिया ।
अवाक स्तब्ध मैं जड़मति 
समझ ही न पाया ये क्या हो गया ?
तभी एक ने कहा 
तुम तो बड़े ही बेशर्म हो ।
जूते खाने के बाद भी 
यहीं खड़े हो ।
माननीयों का चरित्र 
अब मेरी समझ में आ गया ।

वक्त की करवट भाँप 
मैं भी चुपचाप घर आ गया ।। 

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