Saturday, October 10, 2015

बेवफ़ा रूह

  बेवफ़ा रूह


बेवफ़ा करता नहीं है
बेवफ़ाई जानकर ।
यह दुनियाँ ही उसे
मज़बूर कर देती है ।
कौन मरना चाहता है
यहाँ आने के बाद ।
यह दुनियाँ ही उसे मरने पर
मज़बूर कर देती है ।

कौन कमबख़्त चाहता है
अपनों से जुदा होना ।
वक़्त की बदली हुयी चाल
उसे मज़बूर कर देती है ।
कोई भी शख़्स यहाँ
किसी को भूलता नहीं ।
वक़्त की चादर ही रिश्ते
समेटने को मज़बूर कर देती है ।

अंधा यहाँ है आदमी
दौलत की चकाचौंध में ।
मानवता इसलिए
रोने को मज़बूर होती है ।
क्या बुरा और क्या भला है
उसको पता कुछ भी नहीं ।
सोने की चमक आँखों से
दृष्टि छीन लेती है ।

रिश्ते और नाते सब
दरकिनार हो जाते हैं
रुतबे की खाई किनारा करने को
मज़बूर कर देती है ।
क्या बुरा हुआ तुम्हारे साथ
उसने जो तुम्हें छोड़ दिया ?
यहाँ तो औलादें ही
माँ – बाप छोड़ देती हैं ।

ग़ुरूर मत करना तुम
वफ़ाओं की इनायत पर
अज़ीज जिस्म संग बेवफ़ाई को

रूहें भी मज़बूर होती हैं ।।

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