बेवफ़ा रूह
बेवफ़ा करता
नहीं है
बेवफ़ाई जानकर
।
यह दुनियाँ ही
उसे
मज़बूर कर देती
है ।
कौन मरना चाहता
है
यहाँ आने के
बाद ।
यह दुनियाँ ही
उसे मरने पर
मज़बूर कर देती
है ।
कौन कमबख़्त
चाहता है
अपनों से जुदा
होना ।
वक़्त की बदली
हुयी चाल
उसे मज़बूर कर
देती है ।
कोई भी शख़्स
यहाँ
किसी को भूलता
नहीं ।
वक़्त की चादर
ही रिश्ते
समेटने को
मज़बूर कर देती है ।
अंधा यहाँ है
आदमी
दौलत की
चकाचौंध में ।
मानवता इसलिए
रोने को मज़बूर
होती है ।
क्या बुरा और
क्या भला है
उसको पता कुछ
भी नहीं ।
सोने की चमक
आँखों से
दृष्टि छीन
लेती है ।
रिश्ते और नाते
सब
दरकिनार हो
जाते हैं
रुतबे की खाई
किनारा करने को
मज़बूर कर देती
है ।
क्या बुरा हुआ
तुम्हारे साथ
उसने जो
तुम्हें छोड़ दिया ?
यहाँ तो औलादें
ही
माँ – बाप छोड़
देती हैं ।
ग़ुरूर मत करना
तुम
वफ़ाओं की
इनायत पर
अज़ीज जिस्म
संग बेवफ़ाई को
रूहें भी
मज़बूर होती हैं ।।
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