Sunday, September 6, 2015

परिवर्तन

    परिवर्तन

वक्त बदला हालात बदले, 
या इंसान बदला है ।
रात अब भी स्याह है, 
दिन भी अब तक उजला है । 

कल भी मां बाप, 
बच्चों को पालते थे ।
आज तक माँ बाप, 
कर्तव्य पथ पर अडिग हैं ।
सन्तान की खुशी उन्हें, 
कल भी अनमोल थी । 
सन्तानों का ही सुख, 
आज भी उनकी पूँजी है ।
कल तक माँ-बाप की खुशी, 
बच्चों की आन होती थी  ।
माँ-बाप पर क़ुर्बान,  
सन्तानों की जान होती थी ।
माँ-बाप तो आज भी नहीं बदले, 
पर सन्तानों का रूप बदला है । 
वक्त बदला हालात बदले, 
या इंसान बदला है ।

अन्धे माँ-बाप को काँधे पर, 
उठाकर तीर्थ कराए ।
जन्मदाताओं के सुख के लिए, 
तरह-तरह के दु:ख उठाए ।
कहानी श्रीराम और 
श्रवण कुमार की,  
पढ़ी ही होगी ।
वर्तमान के ढंग देखो कहते हैं, 
कहानी काल्पनिक होगी ।
बुजुर्ग तो देवता का रूप हैं, 
भारतीय दर्शन कहता है ।
इक्कीसवीं सदी का आलम, 
मग़र कुछ और कहता है ।
अब वृद्ध लाचार मज़बूर, 
वृद्धाश्रमों में पलता है ।
वक्त बदला हालात बदले, 
या इंसान बदला है ।

जिन्होंने दूध की 
कमी नहीं होने दी, 
पानी को तरसते हैं ।
भूख से व्याकुल गली-गली, 
भीख मांगते फिरते हैं ।
वक़्त ऐसी करवट लेगा कि, 
संस्कार ही मिट जाएंगे ।
किसने सोचा था कि सिद्धान्त, 
सिर्फ किताबों में रह जाएंगे ।
परिवर्तन बड़ा बलशाली है, 
ये कुछ भी कर सकता है ।
किन्तु समाज के धृतराष्ट्रों का, 
सारथी संजय नहीं बन सकता है ।
जन्म और मृत्यु अपरिवर्तित है, 
पानी का रंग भी नहीं बदला है ।
वक्त बदला हालात बदले, 
या इंसान बदला है ।।


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