माँ...
मत मारो मुझे मेरी माँमैं टुकड़ा तुम्हारा ही माँ ।
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
ख़ता क्या हमारी
हमें भी बताओ
जीवन हमारा माँ
यूँ न मिटाओ ,
मैं साया हूँ
तेरा ही माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
तू भी कभी थी
हमारी तरह
मैं हूँ मेरी माँ
तुम्हारी तरह ,
मैं पूरे करुँगी
तेरे ख़्वाब माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
दुनियाँ है कैसी
ये देखी नहीं
मेरी किलकारी भी
मैया गूंजी नहीं ,
मैं रोशन करुँगी
तेरा बाग माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
भैया से कमतर
बनूँगी नहीं
घर में किसी से
लड़ूंगी नहीं ,
टॉफी की जिद भी
करुँगी न माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
जब खत्म ही था करना
फिर सींचा हमें क्यों ,
मैं गुलशन का तेरे ही
हूँ पुष्प माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
कॉलेज जाने की
ज़िद न करुँगी
चौका-चूल्हा
मैं घर पर करुँगी ,
तेरा काम सारा
करुँगी मैं माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।
नहीं बोझ तुझ पर
बनूँगी कभी ,
न शिकवा शिकायत
करुँगी कभी ।
हमें जन्म दे दे
ये विनती है माँ ॥
(राघवेन्द्र कुमार ''राघव'')
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