Saturday, September 19, 2015

माँ.......

                                        माँ...

मत मारो मुझे मेरी माँ
मैं टुकड़ा तुम्हारा ही माँ ।
मत मारो मुझे मेरी माँ ।

ख़ता क्या हमारी 
हमें भी बताओ
जीवन हमारा माँ 
यूँ न मिटाओ ,
मैं साया हूँ 
तेरा ही माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।

तू भी कभी थी 
हमारी तरह
मैं हूँ मेरी माँ 
तुम्हारी तरह ,
मैं पूरे करुँगी 
तेरे ख़्वाब माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।

दुनियाँ है कैसी
ये देखी नहीं
मेरी किलकारी भी
मैया गूंजी नहीं ,
मैं रोशन करुँगी
तेरा बाग माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ  ।

भैया से कमतर 
बनूँगी नहीं
घर में किसी से 
लड़ूंगी नहीं ,
टॉफी की जिद भी 
करुँगी न माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ  ।

जब खत्म ही था करना
फिर सींचा हमें क्यों ,
मैं गुलशन का तेरे ही 
हूँ पुष्प माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ  ।

कॉलेज जाने की 
ज़िद न करुँगी
चौका-चूल्हा 
मैं घर पर करुँगी ,
तेरा काम सारा 
करुँगी मैं  माँ
मत मारो मुझे मेरी माँ ।

नहीं बोझ तुझ पर 
बनूँगी कभी ,
न शिकवा शिकायत 
करुँगी कभी ।
हमें जन्म दे दे 
ये विनती है माँ ॥
                     
                      (राघवेन्द्र कुमार ''राघव'')

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