Monday, September 21, 2015

बुढ़ापा

बुढ़ापा


अंगों में भरी शिथिलता
नज़र कमज़ोर हो गयी ।
देह को कसा झुर्रियों ने
बालों की स्याह गयी ।
ख़ून भी पानी बनकर
दूर तक बहने लगा ।
जीवन का यह छोर
आज अब डसने लगा ।
चलते चलते भूल गया
कितनी देर हो गयी ।
अंगों में भरी शिथिलता
नज़र कमज़ोर हो गयी ।।

जिनके लिए दिन रात
उम्र भर व्यय किए ।
आज उन्होंने ही देखो
कितने ज़ुल्मोसितम किए ।
कल तक मैं जीता था
जिन चेहरों को देखकर ।
आज वही चेहरे ही देखो
तनहा हमको छोड़ गए ।
किसी को अब हमारी
ज़रूरत कहाँ रह गयी ?
अंगों में भरी शिथिलता
नज़र कमज़ोर हो गयी ।।

उंगली थाम कर जिनको
यहाँ चलना सिखाया ।
ज़माने से सदा जिनको
बचाया और आगे बढ़ाया ।
जिनके अरमानों के खातिर
ख़ुद को जला दिया ।
भुलाकर आज हमको वह
ग़ैर के संग चल दिया ।
गुजरते वक़्त के माफ़िक
तारीख़ें धुंधली पड गयी ।
अंगों में भरी शिथिलता
नज़र कमज़ोर हो गयी ।।


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