Wednesday, September 23, 2015

घर में क़ैद नारी

घर में क़ैद नारी


ऐसे कलुषित समाज में लेकर जन्म
वर्ण कुल सब मेरा श्याम हो गया ।
बड़ी दूषित है सोच
कर्म भी काले हैं
गहन तम में
अस्तित्व इनका घुल गया ।
देखकर यह समाज
होती है घुटन आज
कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?

नर्क से निकाल कर
दुनियाँ में जो लायी ।
शून्य मन में ज्ञान की
जिसने ज्योति जलायी ।
जिसका शोणित पीकर
जीवन मिलता है ।
जिसकी ममता के नीचे
ब्रह्माण्ड पनपता है ।
आज चतुर्दिशि ममता के
दामन में लगते दाग ।
कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?

जगत जननी आज अगणित
अत्याचार सहती है ।
अपनी ही कृतियों के कारण
कष्टों में आज रहती है ।
अन्तर्मन झकझोर रहा है
क्यों जुल्म हजार ये सहती है ?
प्रेम वत्सला क्यों आख़िर
कभी नहीं कुछ कहती है ?
अपनी सहनशीलता के ही
चक्रव्यूह में फंसी आज ।
कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?

औरत को शक्ति कहता है
औरत की ही भक्ति करता है ।
सरे बाज़ार औरत को ही
ये इंसान बेइज़्ज़त करता है ।
नारी समाज के लिए हर एक मन में
पूर्वाग्रह भरा है ।
अपने ही घर में क़ैद नारी की
यह एक दुःखद कथा है ।
अधिकारों से वंचित आधी आबादी
क्या यही है समाज ?
कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?




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