घर में क़ैद नारी
ऐसे कलुषित
समाज में लेकर जन्म
वर्ण कुल सब
मेरा श्याम हो गया ।
बड़ी दूषित है
सोच
कर्म भी काले
हैं
गहन तम में
अस्तित्व इनका
घुल गया ।
देखकर यह समाज
होती है घुटन
आज ।
कैसा है समाज
इसे आती नहीं लाज ?
नर्क से निकाल
कर
दुनियाँ में जो
लायी ।
शून्य मन में
ज्ञान की
जिसने ज्योति
जलायी ।
जिसका शोणित
पीकर
जीवन मिलता है ।
जिसकी ममता के
नीचे
ब्रह्माण्ड
पनपता है ।
आज चतुर्दिशि
ममता के
दामन में लगते
दाग ।
कैसा है समाज
इसे आती नहीं लाज ?
जगत जननी आज
अगणित
अत्याचार सहती
है ।
अपनी ही
कृतियों के कारण
कष्टों में आज
रहती है ।
अन्तर्मन झकझोर
रहा है
क्यों जुल्म
हजार ये सहती है ?
प्रेम वत्सला
क्यों आख़िर
कभी नहीं कुछ
कहती है ?
अपनी सहनशीलता
के ही
चक्रव्यूह में
फंसी आज ।
कैसा है समाज इसे आती नहीं लाज ?
औरत को शक्ति
कहता है
औरत की ही
भक्ति करता है ।
सरे बाज़ार औरत
को ही
ये इंसान
बेइज़्ज़त करता है ।
नारी समाज के
लिए हर एक मन में
पूर्वाग्रह भरा
है ।
अपने ही घर में
क़ैद नारी की
यह एक दुःखद
कथा है ।
अधिकारों से
वंचित आधी आबादी
क्या यही है
समाज ?
कैसा है समाज
इसे आती नहीं लाज ?
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