विनाश के पथ पर प्राथमिक
शिक्षा
वर्तमान समय में हरदोई में 2467
प्राथमिक विद्यालय, 939 उच्च प्राथमिक विद्यालय और 48 अशासकीय सहायता प्राप्त जू.
हाई. स्कूल संचालित किए जा रहे हैं । सर्व शिक्षा अभियान
द्वारा विद्यालयों को अनेक सुविधाएँ देने के पश्चात् उनकी शैक्षिक गुणवत्ता में
गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही । ऐसे में जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन विद्यालयों की
स्थापना हुई थी वह बेईमानी साबित हो रहा है ।
गुणवत्ताहीन शिक्षा के कारण लाखों बच्चों का भविष्य अंधकारमय है । सर्व शक्षा
अभियान की शुरुआत प्रत्येक बच्चे को अच्छी शिक्षा मिले, इसीलिए हुई थी । परन्तु
इसी सर्व शिक्षा अभियान ने परिषदीय विद्यालयों पर ऐसे – ऐसे नियम थोपे जिन्होंने
शिक्षा का बंटाधार करने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी है । स्कूल के शिक्षक को शिक्षक
की जगह नौटंकी का जोकर बना दिया गया है । शिक्षक बच्चे को विद्यालय में शारीरिक
रूप से दण्डित नहीं कर सकता । स्कूल से बच्चे का नाम नहीं काटा जा सकता । बच्चे का
पढ़ाई के क्षेत्र में प्रदर्शन चाहे जैसा हो उसे अनुत्तीर्ण नही किया जा सकता ।
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब शिक्षक के पास कोई अधिकार नहीं है तो विद्यालय
में उसकी प्रासंगिकता ही क्या है ? इस पर अत्यधिक ध्यान देने की जरुरत है ।
अब जब शिक्षा का अधिकार हमारे मूल अधिकारों में शामिल है तब शिक्षा की ऐसी
दुर्दशा चिंतनीय है । शिक्षक जो इस अधिकार का मुख्य पोषक व संरक्षक है, आज
बहुद्देशीय कर्मचारी बनकर रह गया है । एक तरफ आठ सौ से एक हजार घंटे शिक्षण के लिए
आदेश पारित होता है वहीं दूसरी ओर इन्हीं अध्यापकों को 2500 से 300 घण्टे जनगणना,
मतगणना, मतदाता सूची पुनरीक्षण, इलेक्शन ड्यूटी जैसे अन्य अनेक कार्यों में अपनी
सेवा देनी पड़ती है । अब ऐसे में किस तरह सुचारु शिक्षण व्यवस्था कायम रह सकती है
। यहाँ पर ध्यान देने योग्य है कि शिक्षकों की संख्या छात्र-शिक्षक अनुपात के
हिसाब से काफी कम है । यदि इसी तरह मूल अधिकारों पर अमल होता रहा है तो ऐसे अधिकार वर्तमान समय में किसी को भी नहीं
चाहिए । जब धिकार ही पैरों की बेड़ियां बनने लगे तो उन्हें काटकर फेंक देने में ही
समाज की भलाई है ।
आज जिस प्रकार से बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है उससे शिक्षा के क्षेत्र
में एक नयी विसंगति भर कर सामने आ रही है । बच्चे को शिक्षित करने के स्थान पर उसे
साक्षर बनाने का प्रयास किया जा रहा है । हालात इस तरह से बिगड़ चुके हैं कि कक्षा
5 का बच्चा कक्षा 2 के सवाल भी बता पाने में असमर्थ है । इस प्रकार की शिक्ष से
समाज में एक नए वर्ग का निर्माण हो रहा है जो न तो अनपढ़ है और न ही शिक्षित । यह
वर्ग समाज में मद्धम विष बनता नज़र आ रहा है ।
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