नकल माफ़ियाओं के चंगुल में माध्यमिक और उच्च शिक्षा.......................................
हरदोई ज़िले की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह नकल माफ़ियाओं की गिरफ़्त में है । प्रतिवर्ष 50000 से ज्यादा छात्र-छात्राएं नकल की महामारी से संक्रमित होकर अंधकार के गर्त में गिर जाते हैं । शासन और प्रशासन नकल के इस काले खेल में बराबरी की भागीदारी का निर्वाह करता दीखता है ।
मार्च - अप्रैल माह में होने वाली परिषदीय परीक्षाओं के लिए नकल की पूरी तरह बिसात बिछायी गयी थी । परीक्षा केन्द्रों के लिए जोड़-तोड़ का खेल पूरा होने के बाद नकल क्षेत्ररक्षण सजाकर कराई गयी । अधिकारिओं से साँठ-गाँठ और परीक्षकों की खरीद-फ़रोख़्त इस खेल की साधारण सी चालें हैं । अपना नाम तक न लिख पाने वाले भी नकल की बहती नदिया में नहाकर यहाँ तर जाते हैं । निकटतम जनपदों को छोड़िए, कई प्रदेशों से छात्र यहाँ अपनी नौका पार लगाने के लिए आते हैं ।
हरदोई जिले के विकास खण्ड बेंहदर, कछौना, सण्डीला, माधोगंज और मल्लावाँ नकल के गढ़ माने जाते हैं । इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा महाविद्यालय और परिषदीय विद्यालय हैं । गिनती के विद्यालयों को छोड़कर लगभग सभी विद्यालयों का हाल कमोबेश एक जैसा ही है । महाविद्यालयों की हालत तो और भी भयावह है । यहाँ श्रेणियों के आधार पर नकल का ठेका उठता है । जैसा सुविधा शुल्क उसी के अनुरूप श्रेणियाँ तय की जाती हैं ।
साधारण तौर पर नकल की दो पद्धतियों का सहारा लिया जाता है । पहला परीक्षार्थी अपनी-अपनी नकल सामग्री अपने साथ लेकर आएँ और प्रश्नपत्र का हल ढूंढकर लिखें और दूसरा सामूहिक रूप से एक कक्ष निरीक्षक मौखिक रूप से इमला की तरह बोलकर सभी को उत्तर लिखाता है । ग़ौर करने योग्य तथ्य यह है कि शासन और प्रशासन द्वारा अधिकृत जाँच दलों को पूरे कक्ष के परीक्षार्थियों के एक जैसे लिखे उत्तर दिखाई नहीं देते, न दिखाई देने का कारण परीक्षा केन्द्रों से मिलने वाली मोटी रकम है ।
करीब 70 फ़ीसदी महाविद्यालयों में और 50 फ़ीसदी माध्यमिक विद्यालयों में कक्षाओं का संचालन ही नहीं किया जाता है । जहाँ माध्यमिक विद्यालयों में नियमित शिक्षण का प्रतिशत 40 है वहीं महाविद्यालयों में यह 20 फ़ीसद भी नहीं रह जाता । माध्यमिक से उच्च शिक्षा संस्थानों तक की यदि बात करें तो 20 प्रतिशत से ज्यादा परीक्षार्थी नकल विहीन परीक्षाओं में सफल नहीं हो सकते ।
परीक्षाओं के दौरान भ्रष्टाचार का आलम यह है कि केन्द्राध्यक्ष बनने के लिए अध्यापकों में प्रतिस्पर्धा रहती है । विद्यालय संचालकों और अध्यापकों से बात करने पर पता चला कि 20000 रूपए से लेकर कई लाख रूपए केन्द्राध्यक्षों को दिए जाते हैं । परीक्षा जाँच दल प्रत्येक ऐसे विद्यालय से औसतन 20000 रूपए माध्यमिक स्तर पर और 50000 रूपए महाविद्यालय स्तर पर वसूलते हैं ।
नकल का यह गोरखधंधा हरदोई जिले में 100 करोड़ से भी ज्यादा का है । इसमें ऊपर से नीचे तक हजारों जिम्मेदार बेईमानी में संलिप्त हैं । गुणवत्तायुक्त शिक्षा तो दूर यहाँ साधारण शिक्षा भी मृतप्राय दीखती है । प्रतिवर्ष परीक्षाओं के समय मीडिया द्वारा दिखावटी हो-हल्ला मचाया जाता है और चाँदी के जूते मिलने के बाद यह सब शान्त हो जाता है । स्थानीय मशीनरी भी पूरी तरह रिमोट संचालित नज़र आती है । कागज़ो पर उच्च शिक्षित हरदोई वास्तव में ढोल सरीखी अन्दर से पूर्णत: खोखली है और दिन-ब-दिन यह कमज़ोर होती जा रही है । वह दिन दूर नहीं जब यह नकल और सरकारी उदासीनता का गठजोड़ शिक्षा को लील जाएगा ।
हरदोई ज़िले की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह नकल माफ़ियाओं की गिरफ़्त में है । प्रतिवर्ष 50000 से ज्यादा छात्र-छात्राएं नकल की महामारी से संक्रमित होकर अंधकार के गर्त में गिर जाते हैं । शासन और प्रशासन नकल के इस काले खेल में बराबरी की भागीदारी का निर्वाह करता दीखता है ।
मार्च - अप्रैल माह में होने वाली परिषदीय परीक्षाओं के लिए नकल की पूरी तरह बिसात बिछायी गयी थी । परीक्षा केन्द्रों के लिए जोड़-तोड़ का खेल पूरा होने के बाद नकल क्षेत्ररक्षण सजाकर कराई गयी । अधिकारिओं से साँठ-गाँठ और परीक्षकों की खरीद-फ़रोख़्त इस खेल की साधारण सी चालें हैं । अपना नाम तक न लिख पाने वाले भी नकल की बहती नदिया में नहाकर यहाँ तर जाते हैं । निकटतम जनपदों को छोड़िए, कई प्रदेशों से छात्र यहाँ अपनी नौका पार लगाने के लिए आते हैं ।
हरदोई जिले के विकास खण्ड बेंहदर, कछौना, सण्डीला, माधोगंज और मल्लावाँ नकल के गढ़ माने जाते हैं । इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा महाविद्यालय और परिषदीय विद्यालय हैं । गिनती के विद्यालयों को छोड़कर लगभग सभी विद्यालयों का हाल कमोबेश एक जैसा ही है । महाविद्यालयों की हालत तो और भी भयावह है । यहाँ श्रेणियों के आधार पर नकल का ठेका उठता है । जैसा सुविधा शुल्क उसी के अनुरूप श्रेणियाँ तय की जाती हैं ।
साधारण तौर पर नकल की दो पद्धतियों का सहारा लिया जाता है । पहला परीक्षार्थी अपनी-अपनी नकल सामग्री अपने साथ लेकर आएँ और प्रश्नपत्र का हल ढूंढकर लिखें और दूसरा सामूहिक रूप से एक कक्ष निरीक्षक मौखिक रूप से इमला की तरह बोलकर सभी को उत्तर लिखाता है । ग़ौर करने योग्य तथ्य यह है कि शासन और प्रशासन द्वारा अधिकृत जाँच दलों को पूरे कक्ष के परीक्षार्थियों के एक जैसे लिखे उत्तर दिखाई नहीं देते, न दिखाई देने का कारण परीक्षा केन्द्रों से मिलने वाली मोटी रकम है ।
करीब 70 फ़ीसदी महाविद्यालयों में और 50 फ़ीसदी माध्यमिक विद्यालयों में कक्षाओं का संचालन ही नहीं किया जाता है । जहाँ माध्यमिक विद्यालयों में नियमित शिक्षण का प्रतिशत 40 है वहीं महाविद्यालयों में यह 20 फ़ीसद भी नहीं रह जाता । माध्यमिक से उच्च शिक्षा संस्थानों तक की यदि बात करें तो 20 प्रतिशत से ज्यादा परीक्षार्थी नकल विहीन परीक्षाओं में सफल नहीं हो सकते ।
परीक्षाओं के दौरान भ्रष्टाचार का आलम यह है कि केन्द्राध्यक्ष बनने के लिए अध्यापकों में प्रतिस्पर्धा रहती है । विद्यालय संचालकों और अध्यापकों से बात करने पर पता चला कि 20000 रूपए से लेकर कई लाख रूपए केन्द्राध्यक्षों को दिए जाते हैं । परीक्षा जाँच दल प्रत्येक ऐसे विद्यालय से औसतन 20000 रूपए माध्यमिक स्तर पर और 50000 रूपए महाविद्यालय स्तर पर वसूलते हैं ।
नकल का यह गोरखधंधा हरदोई जिले में 100 करोड़ से भी ज्यादा का है । इसमें ऊपर से नीचे तक हजारों जिम्मेदार बेईमानी में संलिप्त हैं । गुणवत्तायुक्त शिक्षा तो दूर यहाँ साधारण शिक्षा भी मृतप्राय दीखती है । प्रतिवर्ष परीक्षाओं के समय मीडिया द्वारा दिखावटी हो-हल्ला मचाया जाता है और चाँदी के जूते मिलने के बाद यह सब शान्त हो जाता है । स्थानीय मशीनरी भी पूरी तरह रिमोट संचालित नज़र आती है । कागज़ो पर उच्च शिक्षित हरदोई वास्तव में ढोल सरीखी अन्दर से पूर्णत: खोखली है और दिन-ब-दिन यह कमज़ोर होती जा रही है । वह दिन दूर नहीं जब यह नकल और सरकारी उदासीनता का गठजोड़ शिक्षा को लील जाएगा ।
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