आग
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
सुलगती है अंदर जैसे राज है |
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
घड़ी दर घड़ी ये बढ़ती ही जाती ,
कभी घर कभी बस्तियां ये ज़लाती |
जिधर देखता हूँ उधर आग है ,
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
नामो निशान खो गया है सहर का ,
दिखता असर अब हवा में ज़हर का |
सब कुछ लुटा बस बची साँझ है ,
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
परिंदे भी सहमे दरख्तों में बैठे ,
गुलशन में गुल भी लगते थे झूठे |
अब तो लगता बेसुरा कोयल का राग है ,
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
ढक गयी कली घटा से चांदनी ,
है तड़पती राग से होके जुदा अब रागिनी |
दिल से प्यार मिट गया
बच रही बस खाक है ,
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
क़यामत का वो दिन क्या है यही ?
दिखता नहीं कुछ गलत या सही |
खुदाया..... तेरी क्या यही साख है ?
ये कैसी आग ? कैसी आग ? कैसी आग है ?
राघवेन्द्र कुमार ''राघव''(१६/४/१२)
No comments:
Post a Comment