इंसानी फर्क़
इस दुनियां और उस दुनियां में कितना है फर्क़ |
यहाँ आँखों में बेबसी छलकती है और वहां दर्प ||
ये ज़िन्दगी भी कैसे-कैसे रंग दिखाती हैं ,
किसी को हंसती है तो किसी को रुलाती है |
किसी के हिस्से स्वर्ग की रंगीनी किसी को मिलता नर्क ||
इस दुनियां और उस दुनियां में कितना है फर्क़ |
यहाँ आँखों में बेबसी छलकती है और वहां दर्प ||
एक जला डालता अपनी जवानी रोटी के खातिर ,
किसी की जवानी ऐशोआराम से कटती है |
किसी को तो हवेलियाँ हैं किसी को गर्द ||
इस दुनियां और उस दुनियां में कितना है फर्क़ |
यहाँ आँखों में बेबसी छलकती है और वहां दर्प ||
कोई धूप की तपिश तक नहीं जानता कोई धूप में तपता है ,
किसी के लिए हर मौसम बसंती है कोई हर मौसम से डरता है |
किसी के लिए बीमारी भी वरदान है किसी को सामान-ए-कर्ज ||
इस दुनियां और उस दुनियां में कितना है फर्क़ |
यहाँ आँखों में बेबसी छलकती है और वहां दर्प ||
ग़रीब कब पैदा होता है औए कब जवान हो जाता है ,
दो वक़्त की रोटी के लिए कुर्बान हो जाता है |
जवानी में ही ये ग़रीबी बना डालती है वृद्ध ||
इस दुनियां और उस दुनियां में कितना है फर्क़ |
यहाँ आँखों में बेबसी छलकती है और वहां दर्प ||
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