Tuesday, January 14, 2014

जलियांवाला बाग

          जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,

माँ भारती बेज़ार थी बेज़ार ही वो रह गयी ||          जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,
माँ भारती बेज़ार थी बेज़ार ही वो रह गयी ||          जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,
माँ भारती बेज़ार थी बेज़ार ही वो रह गयी ||

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