जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास
गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी
डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात
करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे
लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा
स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का
जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे
बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी
पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी
चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही
मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा
खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था
क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत
सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से
क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग
हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की
हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया
आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर
कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की
प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,
माँ भारती बेज़ार
थी बेज़ार ही वो रह गयी ||
जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास
गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी
डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात
करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे
लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा
स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का
जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे
बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी
पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी
चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही
मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा
खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था
क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत
सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से
क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग
हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की
हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया
आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर
कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की
प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,
माँ भारती बेज़ार
थी बेज़ार ही वो रह गयी ||
जलियांवाला बाग
सोलह सौ पचास
गोलियां चली हमारे सीने पर ,
पैरों में बेड़ी
डाल बंदिशें लगी हमारे जीने पर |
रक्त पात
करुणाक्रंदन बस चारों ओर यही था ,
पत्नी के कंधे
लाश पति की जड़ चेतन में मातम था |
इंक़लाब का ऊँचा
स्वर इस पर भी यारों दबा नहीं ,
भारत माँ का
जयकारा बंदूकों से डरा नहीं |
लाशें बच्चे
बूढ़ों की टूटे फूलों सी बिखरी थीं ,
आज़ादी की बलिवेदी
पर शोणित बूँदें उभरी थीं |
ललकार बन गयी
चीत्कार गुलजार जगह शमशान हो गयी ,
तारीख बदलती रही
मगर वो घड़ी वहीं पर ठहर गयी |
धूल धूसरित धरा
खून में अंगारों सी दहक रही थी ,
कतरा-कतरा शोला था
क्रांति शिखाएं निकल रही थी |
इसी धूल से भगत
सिंह सा बलिदानी उत्पन्न हुआ ,
उधमसिंह से
क्रांति दूत ने सारी दुनियां को सन्न किया |
अमृतसर की आग
हिन्द में धीरे धीरे छा गयी ,
माँ भारती की
हथकड़ी कटने की बारी आ गयी |
आज़ाद भारत हो गया
आकाश अपना हो गया ,
इंक़लाब का शोर
कागजों में ही दबकर रह गया |
बलिदानों की
प्रथा तिरंगे झंडे में लिपटी रह गयी ,
माँ भारती बेज़ार
थी बेज़ार ही वो रह गयी ||
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