गीत: यार-ए-दीदार
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं |
धड़कने दिल की मगर
प्यार में गुनगुना रहीं |
भीड़ में भी खोजती
रहती निगाहें है जिसे |
सामने पाकर उसे
शर्म से झुक जा रहीं |
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं |
ख़्वाब में मिलकर
जिसे अहसास हो ज़न्नत मिली |
जिसके ख़्वाबों
में हो डूबी वक़्त की हर एक घड़ी |
आँख जब उनसे मिली
अपनी सुध-बुध न रही |
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं ||
दुनियां की हर
दौलत ये दिल क़ुर्बान जिस पर करता है |
नाम पर जिसके
दीवाना दिल ये दिल धड़कता है |
आज उनकी आहटों से
मान की कली मुस्करा रही |
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं ||
दिल के दर्पण में
हसीं तस्वीर जिसकी रहती है |
ये हवाएं ये
फिजाएं सलाम जिसको करती हैं |
दिल की हर धड़कन
जिसे अपना ख़ुदा बतला रही |
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं ||
चांदनी से भी
सलोनी है प्रीति मेरे मीत की |
सबसे बड़ी हसरत थी
मेरी प्यार में इस जीत की |
यार को बाँहों
में पाकर आँख है भर आ रही |
सामना होने पर
उनका नज़रें खुद को छिपा रहीं |
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