Wednesday, October 17, 2012

आज़ादी


  आज़ादी 
                                                       राघवेन्द्र कुमार 'राघव'
        फहर रहा था अमर तिरंगा  जगह यूनिअन जैक की |
      गुजर गयी थी स्याह रात चमकी किस्मत देश की |
   स्वाधीन हुआ परतंत्र देश फिर नया सवेरा आया |
              पन्द्रह अगस्त का दिन खुशियों की झोली भर कर लाया | 
     बापू, चाचा, सरदार सभी की मेहनत रंग थी लायी |
           भगत सिंह, अशफाक, लाहिड़ी की क़ुरबानी रंग लायी |
         खुशियाँ कब-कब बंधकर रहती वो तो आती जाती हैं | 
     वक्त बदलते समय न लगता कैसे रंग दिखाती हैं |
      आज़ादी फिर आज बन गयी सत्ताधीशों  की दासी |
 बापू के अरमान जल रहे खादी पहने अपराधी  | 
    देश जल रहा दंगों में कुम्भकर्ण सरकार हो गयी |
      पराधीन फिर हिंद हो गया आज़ादी बर्बाद हो गयी |
                फक्र करूँ किस आज़ादी पर तिल-तिल भारत ज़लता है |
     आम आदमी आज़ादी के समझ मायने डरता है  |
            आज सियासत की आँधी में आज़ादी का रंग उड़ गया |
           भारत की पावन धरती का रंग आज बदरंग हो गया |
            स्वाधीन हिंद की वर्षगांठ हो तुम्हे मुबारक बार-बार |
                     पर जन-गण-मन है नंगा ,भूखा इज्ज़त अपनी तार -तार | 
             स्वाधीन हिंद की वर्षगांठ हो तुम्हे मुबारक बार-बार || 
                                                         

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