Tuesday, January 14, 2014

बसन्त

       बसन्त
पेड़ पौधे धरा के मचलने लगे
देख यौवन धरा का चहकने लगे ।
प्रेम रंग में रंगा सब है आता नज़र
कलियों के झुण्ड फूल बन फूलने लगे ।
श्रृंगार नया हार नया नये हैं वसन
कजरा गजरा सुर्ख होंठ खिलने लगे ।
चूनर है पीली लाल चोली तन पर पड़ी
फूल इत्र वायु में उड़ेलने लगे ।
रंगीन हो गया जहां मौसम को देखकर
पछुआ और पुरवा में द्वंद होने लगे ।




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