जय श्रीराम
महर्षि वाल्मिकी ने भगवान श्री राम के अवतरण के संदर्भ में लिखा है :
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतुनां षट् समत्ययु: ।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ ।।
नक्षत्रेअदिती दैवत्ये स्वोच्चा सस्ंथेषु पंचषु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्यता बिंदुना सह ।।
अर्थात अश्वमेघ यज्ञ के समाप्त होने पर छह ऋतुएं एक वर्ष बीत जाने पर चैत्र माह में नवमी तिथि को जिस समय पुनर्वसु नक्षत्र था और पांच ग्रह-सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति और शुक्र अपने उच्च स्थान में थे तथा बृहस्पति चंद्रमा से युक्त होकर कर्क लग्न में स्थित था। उसी समय अलौकिक लक्षणों से युक्त भगवान श्रीरामचंद्र का पृथ्वी लोक पर अवतरण हुआ ।
तुलसीकृत रामचरित मानस के अनुसार-
नौमी तिथि मधुमास पुनीता ।
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ।।
मध्य दिवस अति सीत न धामा।
पावन काल लोक विश्रामा ।।
भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी' की गूंज से मन्दिरों में जन्मोत्सव मनाया जा रहा है । श्रीराम को मर्यादा पुरूषोतम कहा जाता है । वह सदाचार का प्रतीक है. यह त्यौहार शुक्ल पक्ष की 9वीं तिथि को राम के जन्म दिन की स्मृति में मनाया जाता है ।
भगवान राम को उनके सुख-समृद्धि पूर्ण व सदाचार युक्त शासन के लिए याद किया जाता है । उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण से युद्ध लड़ने के लिए आए । राम राज्य शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है । रामनवमी के दिन रामनगरी अयोध्या समेत श्रद्धालु बड़ी संख्या में मन्दिरों में जाते हैं और राम की प्रशंसा में भक्तिपूर्ण भजन गाते हैं । उसके जन्मोत्सव को मनाने के लिए उसकी मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं ।
जिस प्रकार भदवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में रात्रि 12 बजे हुआ था. उसी प्रकार श्रीराम का जन्म अयोध्या में दिन के 12 बजे हुआ था । भगवान राम पहले तो अपने विराट स्वरुप में प्रकट हो गए लेकिन माता कौशल्या ने उनसे बालरुप में प्रकट होने का आग्रह किया । उसके बाद भगवान राम बालरुप में आ गए और माता कौशल्या उनके बालरुप को देखकर आह्लादित हो गई ।
सारे जगत के लिए यह सौभाग्य का दिन है; क्योंकि अखिल विश्व के अधिपति सच्चिदानदघन श्री भगवान इसी दिन दुर्दान्त रावण के अत्याचार से पीड़ित पृथ्वी को सुखी करने और सनातन धर्म की मर्यादा की स्थापना के लिए मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में प्रकट हुए थे । महाकवि बाल्मीकजी ने रामजन्म के विषय में विस्तार से लिखा है ।
"दशाननवधार्थाय धर्मसंस्थापनाय च दानवानां विनाशाय दैत्यानां निधनाय च परित्राणाय साधूनां जातो रामः स्वयं हरिः"
अर्थात—रावण के वध, दानवों के विनाश, दैत्यों को मारने तथा धर्म की प्रतिष्ठा एवं सज्जनों के परित्राण के लिए स्वयं श्रीहरि राम के रुप में अवतीर्ण हुए ।
"ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां समत्ययुः ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ नक्षत्रेSदितिदेवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ग्रहेषु कर्कटॆ लग्ने वाक्पताविन्दुना सह “प्रोद्यमाने जगन्नातं सर्वलोकनमस्कृतम कौशल्याजनयद रामं दिव्यलक्षणसंयुत” (अष्टादशः सर्गः-८-९-१०) ।
यज्ञ –समाप्ति के पश्चात जब छः ऋतुएं बीत गयी, तब बारहवें मास में चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौसल्यादेवी ने दिव्य लक्षणॊं से युक्त सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया । उस समय( सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र) ये पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे//बाल्मीक रामायण-अष्टादशः सर्गः श्लोक-८-९-१०) ।
इनके जन्म के समय गंधर्वों ने मधुर गीत गाए । अप्सराओं ने नृत्य किया । देवताओं की दुन्दुभियाँ बजने लगी तथा आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । अयोध्या में बहुत बडा उत्सव हुआ । मनुष्यों की भारी भीड़ एकत्र हुई । गलियाँ और सड़कें लोगों से खचाखच भरी थीं । बहुत-से नट और नर्तक वहाँ अपनी कलाएँ दिखा रहे थे । वहाँ सब ओर गाने-बजानेवले तथा दूसरे लोगों के शब्द गूँज रहे थे । दीन-दुखियों के लिए लुटाए गये सब प्रकार के रत्न वहाँ बिखरे पड़े थे । राजा दशरथ ने सूत, मागध और बन्दीजनों को देने के योग्य पुरस्कार दिये तथा ब्राह्मणॊं को धन एवं सहत्रों गोधान प्रदान किये । ग्यारह दिन बीत जाने पर महाराज ने बालकों का नामकरण-संस्कार किया । उस समय महर्षि वशिष्ठ ने प्रसन्नता के साथ सबके नाम रखे । उन्होंने ज्येष्ठ पुत्र का नाम “राम” रखा । कैकेयीकुमार का नाम भरत तथा सुमित्रा के एक पुत्र का नाम लक्ष्मण और दूसरे का नाम शत्रुघ्न निश्चित किया । इस अवसर पर राजा ने ब्राहमणों, पुरवासियों तथा जनपदवासियों को भोजन भी करवाया । (बाल्मीकरामायण-श्लोक 17-से23)
इस तरह प्रभु श्री राम ने पापियों के सर्वनाश और पृथ्वीवासियों के कल्याण के लिए मानव रूप को धारण किया ।
No comments:
Post a Comment