शहर
राघवेन्द्र
कुमार “राघव”
जब गाय मिले चौराहों पर
कुत्ता बैठा हो कारों में ।
तब ये आप समझ जाना
कोई शहर आ गया ।
टकराकर तुमसे जवां मर्द
बोले क्या दिखता तुम्हें
नहीं ।
तभी वृद्ध दादा जी बोलें
सॉरी बेटे दिखा नहीं ।
बस इतने से ही जान लेना
कोई शहर आ गया ।।
जहाँ लाश के कांधे को
चार लोग भी मिले नहीं ।
माँ-बहन कष्ट नें खड़ी रहें
मगरूर सीट से उठे नहीं ।
कर लेना विश्वास मित्र
कोई शहर आ गया ।।
दर-ओ-दीवार आलीशान
जिधर देखो नज़र आए ।
मगर उनमें नहीं कोई
दादा दादी नज़र आए ।
ठहर जाना मान लेना
कोई शहर आ गया ।।
No comments:
Post a Comment