नशा
सड़क किनारे पड़ी थी एक लाश
उसके पास कुछ लोग
बैठे थे बदहवाश |
उनमे चार छोटे बच्चे
और उनकी माँ थी ,
बूढ़े माँ – बाप थे
कुँवारी बहन थी |
सभी का रो – रो
कर बुराहाल था ,
खाल से लिपटे ढांचे
बता रहे थे ,
वो..... परिवार
कितना बेहाल था |
मैंने पूछा एक आदमी से
भाई ये कैसे मर गया ,
क्या किसी वाहन से
दुर्घटना हो गयी |
लेकिन इसके शरीर पर
चोट तो है नहीं ,
आखिर इसकी जान
कैसे चली गयी |
उसने कहा ये पीता था शराब ,
और स्मैक का भी आदी था |
घरवालों को मारना पीटना
इसकी दिनचर्या थी ,
गाँजे की चिलम का
पक्का साथी था |
ज़मीन जायदाद सब
कौडियों के भाव बेच डाली ,
सारे परिवार को बर्बाद कर गया |
बेचारे घर वाले कल भी रोते थे ,
अब भी रोयेंगे वो नशेड़ी
उसे मरना था मर गया ||
२६/०६/२०१२ (राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’)
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