(व्यंग)
“हमाम
में सब नंगे हैं”
आँखे होते हुए भी
अंधे हैं,
हमाम में सब नंगे
हैं ।
हर कोई ऊँचे
चरित्र की बात करता है,
जहाँ भी बैठता है
गंगाजल छिड़ककर
बैठता है ।
जितना साफ गंगा
को रखा गया है,
उतना ही साफ
चरित्र है ।
कहने में क्या
जाता है सो कह देते हैं,
हमें देखो हम
परम् पवित्र हैं ।
लाख ढूंढों पर
सच्चा नहीं मिलेगा,
सारे के सारे
रंगे हुए बंदे हैं ।
हमाम में सब नंगे
हैं ।।
वेश्याओं के कर्म
को
सब कुत्सित समझते
हैं,
वे भी मेहनत का
ही लेती हैं ।
आज कुछ
प्रजातियाँ
ऐसी भी पनप गयी
हैं ।
जो हराम का धन
लेती हैं ।
ये प्रजाति अपने
को
समझती बड़ी कुलीन
है,
मगर सबसे गिरी और
चरित्रहीन है ।
दुधमुहों का दूध
और
गरीबों का निवाला
भी छीनते हैं,
इंसानी भेष में
भेड़िये
ये इनके काले
धंधे हैं ।
हमाम में सब नंगे
हैं ।।
अपना समाज भी
बड़ा अजीब है,
दोगली नीतियों पर
चलता है ।
इज्ज़तदार तो पुरुष
को बताता है.
मगर इज्ज़त औरत
की उतारता है ।
बलात्कारी को घर
में बिठाता है,
जिस का सब लुट
गया
उस को दुत्कारता
है ।
आज इज्ज़त का
मतलब बदल गया है,
पैसा मान, ईमान और
अभिमान बन गया है
।
ऊँचे लोग हैं
पसन्द भी ऊँची है,
फटे वस्त्रों में
झाँकते
ये नीयत के गंदे
हैं ।
हमाम में सब नंगे
हैं ।।
बेइमानो की रीति
भी अजीब है
नीति भी अजीब है,
इनका साहित्य तो
शकुनि ने लिखा है
।
कहते हैं जिसे
मौका नहीं
मिला वही ईमानदार
है,
वरना इस दुनियां
में
सब के सब बेईमान
हैं ।
हम भी इनकी हां में
हां मिलाते हैं,
ये खाते ही जाते
हैं
हम खिलाते ही
जाते हैं ।
इनकी तृष्णा कभी
तृप्त नहीं होती
है,
ये रावणकाल के
भूखे और लंघे हैं ।
हमाम में सब नंगे
हैं ।।
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