Tuesday, January 14, 2014

“हमाम में सब नंगे हैं”

(व्यंग)
हमाम में सब नंगे हैं
आँखे होते हुए भी अंधे हैं,
हमाम में सब नंगे हैं ।
हर कोई ऊँचे चरित्र की बात करता है,
जहाँ भी बैठता है
गंगाजल छिड़ककर बैठता है ।
जितना साफ गंगा को रखा गया है,
उतना ही साफ चरित्र है ।
कहने में क्या जाता है सो कह देते हैं,
हमें देखो हम परम् पवित्र हैं ।
लाख ढूंढों पर सच्चा नहीं मिलेगा,
सारे के सारे रंगे हुए बंदे हैं ।
हमाम में सब नंगे हैं ।।
वेश्याओं के कर्म को
सब कुत्सित समझते हैं,
वे भी मेहनत का ही लेती हैं ।
आज कुछ प्रजातियाँ
ऐसी भी पनप गयी हैं ।
जो हराम का धन लेती हैं ।
ये प्रजाति अपने को
समझती बड़ी कुलीन है,
मगर सबसे गिरी और चरित्रहीन है ।
दुधमुहों का दूध और
गरीबों का निवाला भी छीनते हैं,
इंसानी भेष में भेड़िये
ये इनके काले धंधे हैं ।
हमाम में सब नंगे हैं ।।
अपना समाज भी बड़ा अजीब है,
दोगली नीतियों पर चलता है ।
इज्ज़तदार तो पुरुष को बताता है.
मगर इज्ज़त औरत की उतारता है ।
बलात्कारी को घर में बिठाता है,
जिस का सब लुट गया
उस को दुत्कारता है ।
आज इज्ज़त का
मतलब बदल गया है,
पैसा मान, ईमान और
अभिमान बन गया है ।
ऊँचे लोग हैं
पसन्द भी ऊँची है,
फटे वस्त्रों में झाँकते
ये नीयत के गंदे हैं ।
हमाम में सब नंगे हैं ।।
बेइमानो की रीति भी अजीब है
नीति भी अजीब है,
इनका साहित्य तो
शकुनि ने लिखा है ।
कहते हैं जिसे मौका नहीं
मिला वही ईमानदार है,
वरना इस दुनियां में
सब के सब बेईमान हैं ।
हम भी इनकी हां में
हां मिलाते हैं,
ये खाते ही जाते हैं
हम खिलाते ही जाते हैं ।
इनकी तृष्णा कभी
तृप्त नहीं होती है,
ये रावणकाल के भूखे और लंघे हैं ।
हमाम में सब नंगे हैं ।।  



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