फ़िल्म समीक्षा : यमला पगला
दीवाना-2
------ कमजोर
कथानक की
फ़िल्म
(आदित्य त्रिपाठी)
पात्र : धर्मेंद्र, सनी देओल, बॉबी देओल,
नेहा शर्मा, क्रिस्टीना अखीवा
निर्देशक : संगीत शिवन
संगीत : शारिब-तोषी
बिना अच्छी कहानी के फिल्म प्राणहीन होती है । कहानी के मामले में फिल्म यमला पगला दीवाना
- 2 कुछ कमज़ोर मालूम
होती है । फिल्मकार संगीत शिवन औसत नजर आते हैं । फ़िल्म से एक कुशल फ़िल्मकार
नदारद है । धर्मेंद्र, सनी और बॉबी की
तिकड़ी को एक साथ देखना वाकई मजेदार है और उनसे जबर्दस्त प्रदर्शन की उम्मीद भी
रहती है, लेकिन “अपने” 2007 और “यमला पगला दीवाना” 2011 जैसी हिट फिल्में देने
वाली यह जोड़ी कमज़ोर कहानी के चलते बेहद औसत नज़र आती है । पिता – पुत्रों के
अभिनय से सजी इस फ़िल्म से काफी अपेक्षाएं थीं लेकिन कमजोर कहानी और औसत अभिनय के
कारण यह फिल्म साधारण से ज्यादा कुछ नहीं ।
फिल्म में रोमांस हंसाता है और कॉमेडी रुलाती है । इमोशन ढूंढने से भी
नहीं मिलता है । एक दो एक्शन दृश्यों के अलावा फिल्म में कुछ भी देखने लायक
नहीं है । लगता है कि जसविंदर सिंह ने संवाद मज़बूरी में लिखे हैं । लिंडा देओल की
लिखी कहानी नीरस है । शारिब-तोषी का संगीत ठीक ही है और कुछ गाने भी अच्छे बन पड़े
हैं । गाना मैं ताँ ऐंदां ही नचणा.... अच्छा बन पड़ा है । धरम पा जी का अंदाज,
बॉबी की सलमान स्टाइल और सनी का भांगड़ा अच्छा है । नेहा शर्मा और क्रिस्टीना
अखीवा सुन्दर लगी हैं, अभिनय में गहरायी जरूर नहीं है लेकिन ठीक रहा है ।
कभी बिना एक्शन और बिना इमोशन की फ़िल्म देखी है । अगर नहीं तो यमला पगला
दीवाना – 2 देखें यह कुछ इसी तरह की फिल्म है । धरम (धर्मेंद्र) के दो बेटे हैं परमवीर सिंह
(सनी देओल) और गजोधर (बॉबी देओल), जिसमें धरम और गजोधर दोनों नम्बरी ठग हैं और
बनारस में रहकर ठगी करते हैं । वहीं परमवीर सिंह लंदन में अच्छी ज़िन्दगी बिता रहा
है । परमवीर सिंह (सनी देओल) अपने भाई और पिता को सुधारने का प्रयास भी करता है,
लेकिन ठगी को ही ज़िन्दगी मानने वाले वो दोनों परमवीर सिंह (सनी देओल) को भी
बेवकूफ बनाते हैं । हद तो तब हो जाती है जब दोनों ठग एक अप्रवासी भारतीय योगराज
खन्ना (अनु कपूर) को ठगने लिए बनारस से लंदन पहुँच जाते हैं । उसकी दो बेटियां हैं
सुमन (नेहा शर्मा) और रीत (क्रिस्टीना अखीवा) । गजोधर (बॉबी
देओल) अपना नाम बदलकर प्रेम रख लेता है और सुमन से इश्क का चक्कर चलाता है । रीत
का दिल परमवीर सिंह पर आ जाता है । अब देखना यह है कि क्या परमवीर सिंह अपने ठग पिता
और भाई को सही राह पर ला पाता है ? क्या धरम और गजोधर उर्फ प्रेम अपनी चाल में कामयाब हो पाते हैं ? फ़िल्म का ताना – बाना इसी प्लॉट पर बुना है ।
सनी देओल सरदार के रोल में हमेशा की तरह जंचे हैं और एक्शन भी ठीक –ठाक रहा है
। सनी देओल पर उम्र का असर साफ देखा जा सकता है । लेकिन कहानी के अभाव में मजा
नहीं आ पाता । धर्मेंद्र की ऐक्टिंग ठीक है, बॉबी देओल भी अच्छे लगे
हैं । कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है कि दर्शकों को बांध सके । फ़िल्म में अनुपम खेर और जॉनी
लीवर को क्यों लिया गया समझ से परे है । ओरांगोटान कुछ दृश्यों में हंसी दिलाता है । अन्नू कपूर के अभिनय में गहरायी नज़र आती है ।
लगभग ढाई घंटे की यह फिल्म बोझिल लगती है लेकिन सिने प्रेमी एक बार तो झेल ही लेंगे
। अगर आप देओल परिवार के प्रशंसक हैं तो फिल्म देख सकते हैं ।
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