टीवी कार्यक्रम के लिए
स्क्रिप्ट (भाग-1)
(कुछ दोस्त कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग ले
रहे हैं, जहाँ वह महिला सशक्तिकरण पर खुली बहस करते हैं । इसी वाद – विवाद को
दो अंकों के एक कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं)..............राघवेन्द्र कुमार...........
कार्यक्रम के पात्र
निम्नवत हैं------
1.
कामिनी
2.
संतोष
3.
रजनी
4.
केशव
कामिनी -------- आजादी के इतने सालों बाद जब अपने देश को देखती हूँ तो लगता है हम काफी
ऊँचाइयों पर पहुँच गए हैं ।
बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें, तेज दौड़ती गाड़ियाँ और लोगों की बढ़ती आय से यह जाहिर है कि भारत ने बहुत तरक्की
की है ।
यह किसी चमत्कार से कम नहीं कि जिस देश में सुई भी नहीं
बनती थी वहाँ बड़े-बड़े कारखाने चल रहे हैं, छोटी चीजों से लेकर महत्वपूर्ण मशीनें तक देश में ही तैयार की जा रही हैं, रेल की पटरियाँ पूरे देश में
फैल गई हैं ।
लेकिन देश की आधी आबादी विकास का मतलब ही नहीं जानती । वो
तो बस रो रही है अपने स्त्री भाग्य पर.....
मथुरा
बलात्कार मामला याद है, ये राष्ट्रीय स्तर के सबसे पहले मामलों में से था जिसने महिला समूहों को एकजुट
किया ।
मथुरा में एक पुलिस स्टेशन में एक लड़की के साथ बलात्कार
करने के आरोपी पुलिसकर्मियों को बरी करने का 1979-80 में बड़े स्तर पर व्यापक
विरोध हुआ ।
ये विरोध व्यापक
रूप से राष्ट्रीय मीडिया में दिखाए गए तथा इन्होंने सरकार को गवाही कानून, अपराध प्रक्रिया कोड एवं भारतीय
पीनल कोड को संशोधित करने के अलावा निगरानी में बलात्कार की श्रेणी बनाने पर विवश
कर दिया ।
महिला आन्दोलनकारी, कन्या वध, लिंगभेद, महिलाओं की सम्पत्ति एवं महिला
साक्षरता जैसे मुद्दों पर एक हो गईं ।
लेकिन दिल्ली में
16 दिसंबर 2012 की घटना ने इस पुरुषवादी समाज के भयावह रूप को सामने लाकर स्त्री
सुरक्षा को खुली चुनौती दे डाली ।
संतोष ------ तुम्हें ये नही लग रहा कि हमारी माँ, दादी जितनी खुश थीं उतनी ही
नाखुश हमारी बहन और बीवी है ?
उसका कारण सोचो तब समझो कि आज की नारी दुखी क्यों है ?
आप की आज़ादी हमे मंज़ूर है, लेकिन संस्कारों के बलिदान की
कीमत पर नहीं ।
तुम्हें नहीं लगता कि आज की महिला सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक नहीं वह
सांसकृतिक आज़ादी चाहती है ।
यह आप की मर्जी
कि घर को मंदिर बनाना चाहती हो या फिर मॉल
।
रजनी..........आज समाज में महिलाओं के कल्याण के लिए
खूब काम हो रहे हैं ।
आज हालत ये है कि देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व
राज्यपाल महिलाएं रही हैं ।
लोकसभा अध्यक्ष, तीन राज्यों की मुख्यमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष की नेता तक
महिलाएं हैं ।
कॉरपोरेट जगत में महिलाओं का डंका बज रहा है, चाहे इंदिरा
नूयी हो या चंदा कोचर ।
जगह जगह आरक्षण दिया जा रहा है, आप क्या चाहती हैं कि केवल
महिलाओं का राज हो जाए । जो हमें चाहिए हम उसे नहीं मांगते हैं हम इस बात पर हाय –
हाय करते हैं कि पुरुष हमसे आगे क्यों ?
केशव--------- महिला सशक्तिकरण की हवा चली हुई है
और यह हवा वही मीडिया और टीवी चैनल फैला रहे हैं जो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए
महिलाओं की अर्धनग्न और कामुक छवि पेश करते है. .. ये कैसा महिला सशक्तिकरण है ?
मीडिया चैनल किसी बलात्कार और रेप की कहानी को ब्लू फिल्म
की तरह पेश करते हैं ।
आज आप किसी भी न्यूज़ चैनल की वेबसाइट देख लो वह अपने
लाइफ्स्टाइल सेक्शन को ही सबसे ज्यादा बढावा देते हैं जिसमें सिर्फ महिलाओं को
कामुक बना कर परोसा जाता है ।
क्या यही है महिला
सशक्तिकरण ?
कामिनी--------- बहुत खूब मैने जैसे ही महिला होकर महिलाओं का समर्थन किया समाज के परम् पुरुष
अपनी पुरुषवादी दलीलों को लेकर आ ही गए कि अब तो महिलाओं का राज है ।
लेकिन आपको शायद यह मालूम ही नहीं कि इसमें से दो राज्य तो
ऐसे हैं जहां महिला मुख्यमंत्री होने के बाद ही वह राज्य महिलाओं के लिए एक “खौफनाक” जगह है ।
दिल्ली और बंगाल मे अगर कोई लड़की रात को नौ बजे के बाद सड़क
पर अकेले जाए तो उसे सिर्फ भगवान का भरोसा होता है ।
आखिर क्यों महिलाएं इस देश में आजाद नहीं है ?
इस क्यों का उत्तर है पुरुषवादी समाज और उसकी सोच जो महिलाओं
को सिर्फ भोगना जानती है ।
केशव--------- आपके होते हुए, कोई और इस विषय पर कुछ बोले तो गलत बात होगी, खैर मैं तो आपके
आवाहन के बाद कुछ बोलने की हिम्मत जुटा पाया हूँ । धन्यवाद आपका...
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है कि हमारे समाज में सदिओं
से नारी न सिर्फ वंचित रही है बल्कि प्रताड़ित भी होती रही है ।
इसके कई कारण हो सकते हैं जिनपर
चर्चा करना मौजूदा माहौल में उचित नहीं होगा…
लेकिन अब नारी न सिर्फ सशक्त हो रही है, बल्कि सभी क्षेत्रों में पुरुषों से लगभग बराबरी कर रही है ।
वैसे मुझे आपका पुरुषवादी शब्द
बहुत भ्रमित करता है !
क्या आप कभी इसको थोड़ा विस्तार से समझाने की कृपा करेंगी ?
कैसे होते हैं पुरुषवादी लोग ?
कहाँ रहते हैं ?
क्या करते हैं ?
क्या खाते हैं ?
यह भी सत्य है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध बढे हैं..
लेकिन इसकी जिम्मेदारी पूरे समाज की है..
क्योंकि महिलाएं भी सभी अपराधों को अंजाम दे रही हैं...
महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले संगठनों को और प्रयास
करने चाहिए और जड़ों को मजबूत बनाना चाहिए ।
मेरे विचार से सार्थक शिक्षा ही
सर्वश्रेष्ठ विकल्प है ।
ये सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि सभी दबे कुचले
समाजों के लिए आवश्यक है ।
वैसे जब अन्य समस्याएं देश पर हावी हों और अधिसंख्य लोग
प्रभावित हो , ऐसे में मैं आपसे पूरे समाज के लिए सार्थक विमर्श की आशा करता हूँ ।
टीवी कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट (भाग 2)
संतोष ------ मैं आप सब से ये जानना चाहता हूँ की
ये महिला सशक्तिकरण का मतलब क्या है ?
एक तरफ तो महिलायें ये कहती है कि वो हर मामले में पुरुषों
के बराबर हैं ।
वे वह सब काम कर
सकती हैं जो एक पुरुष कर सकता है लेकिन फिर वो खुद ही हर जगह लेडिस फर्स्ट और
महिला आरक्षण की बात करती हैं ।
अगर बस या ट्रेन
में सीट न मिले तो वो महिला होने का हवाला दे के सीट हासिल कर लेती हैं ।
अगर टिकट खिड़की पर भीड़ हो तो भी वो अलग लाइन में जाकर
टिकट ले लेती हैं, ऐसा क्यों ?
जब एक पुरुष खड़े - खड़े यात्रा कर सकता है तो एक महिला क्यों
नहीं ?
क्या महिला सशक्तिकरण का अर्थ
सिर्फ यही है कि महिला जितने मर्जी छोटे कपडे पहने . जितना मर्जी अपना जिस्म दिखाए
और पुरुष नामर्दों की तरह से दूर से देख के नज़रें झुका के सरीफ बनके चले जाये?
महिलाये जो मर्जी करे पुरुष चुप
चाप देखते रहे?
मैं सभी महिलाओ से
ये पूछना चाहता हूँ कि आखिर आज की महिला को किस बात का अधिकार नहीं है ?
हर महिला को पढ़ने का अधिकार है ।
हर महिला को मतदान का अधिकार है ।
हर महिला को डॉक्टर बनने का अधिकार है ।
वकील बनने का अधिकार है. जो मर्जी बनने का अधिकार है ।
इलेक्शन लड़ने का अधिकार है ।
आखिर महिलाओं के पास ऐसा कौन सा अधिकार नहीं है जो वो चाहती
हैं ?
केशव ---------- इसमें
कोई दो राय नहीं है कि हमारा समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है ।
जहां तक नारी मुक्ति और
महिला सशक्तीकरण की बात है समाज मे स्त्री-पुरुष समानता लाने और इसे और आगे तक ले
जाने की जरुरत है ।
लेकिन हमेशा से यह देखने
मे आया है कि समाज में भले के लिए जो भी कार्य शुरु किया गया कार्य के मंजिल तक
पहुंचने से पहले ही विकृतियां उसकी दशा एवं दिशा दोनों ही बदल जाती हैं ।
संतोष............... मुझे लगता है इसके लिए
भौतिकवाद उत्तरदायी है ।
स्त्री और पुरुष दोनों ही
आज आत्माभिमान की जकड़ में हैं जो टकराव का मुख्य कारण है ।
खास तौर से आज कल के
परिप्रेक्ष्य में हमें यह देखने को मिल रहा है कि उच्श्रंखलता अधिक सभ्यता और
शालीनता कम नजर आती है ।
अभी महिला उत्पीड़न के
विरूद्ध दिल्ली की सड़कों पर लड़कियों ने बेशर्मी का मोर्चा यानी स्लटवॉक निकाला
था। खुली सड़क पर अर्ध नग्न शरीर में प्रदर्शन को ही महिला सशक्तीकरण कहेंगे ।
किसी भी मनुष्य की विचार धारा और उसका स्वभाव, उसके द्वारा किए जाने वाले कर्मो में परिलक्षित होता है।
कामिनी ----------- हाँ मैं आपसे सहमत हूँ । वास्तव में हमारे समाज में महिला सशक्तीकरण तभी संभव
है जब तक उनके शिक्षा,दिक्षा से लेकर रुढ़िवादी
मानसिकता और विचार धारा बदलने पर ही सही मायने में महिला सशक्तीकरण और उनका उद्धार
होगा।
केशव ------- प्रकृति ने स्त्री और पुरुष दोनों को अलग-अलग प्रकार की
शक्तियां देकर एक समान रूप से सशक्त बनाया है ।
पुरुष में अगर शारीरिक
सामर्थ्य थोड़ी ज्यादा है तो स्त्री में शारीरिक शक्ति का संवरण करने की शक्ति
पुरुष से अधिक होती है ।
इसका प्रमाण है कि भारत
में महिलाओं की औसत आयु पुरुषों की औसत आयु से लगभग पांच वर्ष अधिक है।
भावनात्मक रूप से महिलाएं
पुरुषों से अधिक संतुलित होती हैं ।
विषम परिस्थितियों से
शीघ्र बाहर निकल कर संयमित हो जाने और दर्द सहने की क्षमता स्त्रियों में पुरुषों
से अधिक होती है ।
मानसिक प्रबलता और
कार्य-निपुणता में महिलाएं अगर पुरुषों से इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं हैं ।
फिर यह समझने की जरूरत है
कि स्त्री क्यों पुरुष के अधीन होती चली गई?
रजनी..........जब हमें पता है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अनुसार शिक्षण संस्थाओं, सरकारी नौकरियों
और प्रशासन में सभी उपेक्षित वर्गों की समुचित भागीदारी सुनिश्चित करने की
परिकल्पना की गई है ।
फिर यह समझ से बाहर है कि
अभी तक किसी ने भी शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत
आरक्षण की मांग क्यों नहीं की है ?
राजनीति में अब भी एक
तिहाई भागीदारी की मांग की जा रही है, जबकि महिलाएं राजनीति में
भी आधे हिस्से की हकदार हैं ।
संतोष ------ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वास्तव
में महिलाएं सिर्फ पुरूषों का विरोध करके ही अपने को महिला-सशक्तिकरण के एक विजेता
के रूप मे मानने लगती हैं ।
सिर्फ “दहेज, घरेलू-हिंसा, तलाक के झूठे मुकदमें डाल देने से महिला-सशक्तिकरण सिद्ध हो जाता है” इस मानसिकता से महिलाओ को
निकलना होगा।
मै अपनी बहनों से एक सवाल करता हूँ कि क्या इन मुकदमों के
दुरूपयोग से वे समाज़ में सही स्थान पा पाती हैं ? क्या सास, ननद, देवरानी, जेठानी महिला नहीं है
रजनी ------ आज नारी सशक्तीकरण का अर्थ पुरूष
प्रधान समाज को समाप्त कर नारी प्रधान समाज स्थापित करना है । ऐसा करने से सामाजिक
विषमता और असंतोष तो जैसे का तैसा बना रहेगा । आज जरूरत इस बात की है कि कैसे हम
समाज के दोनों पहिए एक साथ चलकर सामाजिक लक्ष्यों तक पहुँचते हैं ।
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