आदित्य के दोहे
दूषित है पर्यावरण, बरस रही
है आग |
नदियाँ जल से रहित हैं,
सूखे पड़े तड़ाग || १
नदियों में मल को बहा, सदा
करें अपवित्र |
फिर भी कहते घूमते, हम हैं
इनके मित्र || २
जल में ही जीवन निहित,
मित्र सही यह बात |
फिर भी हम करते सदा, दूषित
सरिता गात || ३
घोटालों में अति निपुण, खूब
बजाते गाल,
खुद को मालामाल कर, देश
किया कंगाल || ४
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