Monday, February 11, 2013

आदित्य के दोहे


         आदित्य के दोहे     

दूषित है पर्यावरण, बरस रही है आग |
नदियाँ जल से रहित हैं, सूखे पड़े तड़ाग || १ 
नदियों में मल को बहा, सदा करें अपवित्र |
फिर भी कहते घूमते, हम हैं इनके मित्र || २
जल में ही जीवन निहित, मित्र सही यह बात |
फिर भी हम करते सदा, दूषित सरिता गात || ३
घोटालों में अति निपुण, खूब बजाते गाल,
खुद को मालामाल कर, देश किया कंगाल || ४ 

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