Tuesday, December 4, 2012

विकास


                                                                   विकास

                                   यह कैसा विकास है |             
जहाँ उद्भव से अंत तक ,
विनाश ही विनाश है |
यह कैसा विकास है |
आपसी प्रेम को ,
लालच की आग में जलाया |
रामराज का क़त्ल कर ,
रावणराज चलाया |
कहीं धन और वैभव से ,
किसी की बुझी प्यास है |
यह कैसा विकास है |
प्राकृतिक सुषमा का विनाश कर ,
कंक्रीट के जंगल बना डाले |
काट – काट कर हरे जंगल ,
मरुस्थल बना डाले |
नदियों की कोख में उड़ेल ज़हर ,
छीन ली साँस है |
यह कैसा विकास है |
बोनसाई को अहाते में ,
लगाकर निहारते हैं |
मृगमरीचिका में फंसे ,
हिरण की तरह नज़र आते है |
कलकारखाने के पुर्जों जैसी जिंदगी ,
मनुष्य इसका दास है |
यह कैसा विकास है |
भूख से बहाल बच्चे ,
आवारा सड़कों पर भटकते हैं |
मगर हम बंदूकों और ,
कारतूसों पर खर्च करते है |
बारूद की चमक में ,
गुम बच्चे की लाश है |
यह कैसा विकास है |
सूबेदार से हवलदार ,
सबके सब मालदार हैं |
अन्नदाता की किस्मत देखिये ,
क़र्ज़ में डूबा घर – बार है |
विकास का पहिया टूट रहा ,
आमजन बदहवास है |
यह कैसा विकास है ||
                                (राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’)

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